जब बारी हिंदी साहित्य की आती है तो ऑंखें दिखाना एक आम बात है और हम अक्सर ऐसा देखते भी हैं। लिट्-फेस्टों में शायद किसी कोने में आपको दबी जुबान कुछ हिंदी के लेखक या कवि भी बात करते दिख जाएँ अनायास ही। वो भी असहज महसूस करते हैं अंग्रेजी साहित्यकारों की भीड़ में आने से क्यूंकि वहां जावेद अख्तर जैसे संजीदा कलाकार ही बैठ सकते हैं जिनके राजनैतिक बयानों से मीडिया वालों को कुछ मसाला मिले या फिर रघुराम राजन जैसे सहज साहित्यकार ही परिचर्चा में हिस्सा ले ले सकते हैं क्यूंकि उनकी अंग्रेजी शायद ही विदेशियों से कहीं भी कम हो! हिंदी साहित्यकारों या भी हिंदी समीक्षा वालों को पूछेगा कौन? हिंदी तो एक वैसी भाषा है जिसका इस्तेमाल हमारे बाबू लोग साहित्य में तभी करते हैं जब कोई विचार बेचने हों। पर अब ऐसा नहीं होगा! हमें ये बदलना होगा और इसका एक प्रयास हम करने की कोशिश कर रहे हैं इस मंच के माध्यम से। हम हिंदी साहित्य की प्रतिभाओं को एक मंच देना चाहते हैं जहाँ वो अपनी रचनाएँ पाठकों तक रख सकते हैं।
जी हाँ – हिंदी समीक्षा एक ऐसा मंच होगा जहाँ पे हम आदर्शवादी लेखकों से लेके आधुनिक एंड प्रयोगवादी लेखकों की पुस्तकों की समीक्षा करेंगे एवं उन पुस्तकों को हिंदी पाठकों तक लाने का प्रयास करेंगे जो वहां तक आने चाहिए। हमारे प्रयास को सार्थक बनाने के लिए कुछ संजीदा एवं गंभीर पाठक हमारे साथ जुड़े हुए हैं और हमें अपनी मेहनत पर भी पूरा यकीन है! हिंदी सहित्य की हमारी आकांक्षा केवल आकांक्षा ही नहीं बल्कि लाखों दिलों की महत्वाकांक्षा है जिसे पूरा करने का अथक एवं निरंतर प्रयास हमें साथ में करना है और हम करेंगे।
हम अपने पाठकों से भी यही अनुरोध करेंगे की यदि आप भी कोई पुस्तक पढ़ते हैं एवं आपको वो पुस्तक अच्छी लगे तो हमें अपनी हिंदी समीक्षा लिखके आप जरूर भेजें और यहाँ प्रकाशित करेंगे ताकि आपके विचार और पाठकों तक आसानी से पहुँच सकें।