“अंकित सक्सेना को श्रद्धान्जली”
लो एक और चढ़ा नफ़रत के परवान,
ना वो हिन्दू था, ना था मुसलमान,
एक बेटा था, एक प्रेमी था, जो मार दिया गया सरेआम,
क्योंकि मर चुकी इंसानियत और मर चुका है इंसान!
ना ही किसी ने आवाज़ उठायी, ना ही किसी ने गुहार लगाई,
धर्म के नारों, बेकार की बहस, और न्यूज़ चैनल्स की
बेवजह की आवाजों ने, तीखे तकाजों ने
एक माँ की तड़प और चीख है दबाई!
वो जो मुर्दों को भी बेच खातें हैं,
दुश्मन को घर बुला, गले लगाते, दावतें उड़ाते हैं,
और करते हैं ढोंग, कह कर कि निगेहबान हूँ आपका,
वो क्या जाने, जब गर्दन कटते देखी होगी,
क्या हाल हुआ होगा, उस बाप का!
बचपन में जिसने उसे गोद में उठाया होगा,
बीमार होता था वो, पर उसकी तकलीफ ने,
सारी रात बाप को जगाया होगा,
जो बेटे की एक ख़ुशी पर खुद को न्योछावर कर देता होगा,
उस बाप के कंधें पर दुनिया का सबसे बड़ा बोझ,
खून से लथपथ इकलोते बेटे की लाश का आया होगा!
सदियों से जो कर रहें हैं राज,
धोखे, झूठ और लालच का पहन सिर पर ताज,
पैसों से तोल देंगे फिर एक जीवन को आज,
शर्मिंदा कर देंगे फिर एक माँ की लोरियों को,
जिसके सपनों पर गिर गयी अचानक से गाज,
ना कभी आई थी, ना कभी आएगी,
इन बेशर्मों को इस बात की लाज!
इन्सान मारा जा रहा है,
जन्म से पहले, जन्म के बाद,
किसी का बेटा काट दिया गया भरे बाज़ार,
और नेता बजा रहें हिन्दू-मुस्लिम का,
ख़ुद के फ़ायदे वाला राग!
मैं लिख रही हूँ, पर सब गाँधी के,
तीन बन्दर बन कर, जीए जा रहे हैं, मर रहे हैं,
आवाज़ उठाने, इन्कलाब लाने का वक़्त किसके पास है,
कल वो शहीद हुआ था, आज ये गया, कल कोई और जायेगा,
यही इतिहास का सच और सच का इतिहास है!
२३ साल की उम्र में एक वो ‘शहीद भगत सिंह’ था,
२३ साल की उम्र में एक ये ‘शहीद अंकित सक्सेना’ था,
उसका भी ‘मोहब्बत’ से लेना-देना था,
इसका भी ‘मोहब्बत’ से लेना-देना था!
वो गया था देश की मोहब्बत के लिए,
सारा देश रो दिया,
इसके कटते ही देखो जालिमों ने,
धर्म और नफ़रत का बीज फिर से बो दिया!
ना कोई बदलेगा, न बदलना ही कोई चाहता है,
जैसे रोज की आदत सी हो गयी है,
जिसका बेटा काट दिया गया बीच सड़क पर,
उस माँ के साथ आज भारत माँ भी रो गयी है!
ना उसकी(भारत माँ) टीस किसी को बदल पाई है,
ना इस माँ की (अंकित की माँ) टीस किसी को बदल पायेगी,
‘निर्भया’, ‘अंकित’, या ‘मंजुनाथ’, जैसे मासूमों की,
किसी ना किसी वजह से, और हत्याएं की जाएँगी!
सीना जब तक नोच नहीं देते, ये देश देश-समाज-धर्म के ठेकेदार,
जब तक छीन नहीं लेते, हर बाप से बेटी, माँ से बेटा,
बहन से भाई, प्रेमी से प्रेमिका का प्यार,
भूख नहीं मिटती जब तक इनकी राजनीति की,
तब तलक नहीं मानेगें ये सब हार!
हार तो नौजवान गये हैं इनके आगे,
ना कोई हिम्मत करता है, न आवाज़ उठाता है आके आगे,
बस ‘लाइक’, ‘डिस-लाइक’ और ‘कमेंट’ से काम चला रहा है, हर इंसान,
और बर्बादी की ओर बढ़ता जा रहा है, देखो “मेरा भारत महान”!
पलक कुंद्रा के द्वारा रचित कविता
(पलक कुंद्रा एक लेखिका हैं और इनके द्वारा रचित प्रथम हिंदी उपन्यास ब्लीडिंग क्वींस महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध के खिलाफ है। इस उपन्यास के लिए इन्हें सर्वश्रेस्थ लेखिका का पुरस्कार भी मिल चूका है। ज्यादा जानने के लिए यहाँ जाएँ – http://palakkundra.in/ )
(ऊपर की कविता में दिए गए विचार लेखिका के अपने विचार हैं)