साहित्य के बिना साहित्य कैसे लिखी जाती है उसीका एक संजीदा उदाहरण है ये पुस्तक!
साहित्यिकविमर्शोंमेंजबआधुनिकहिंदीसाहित्यपर बात होती हैतोपतानहींक्योंसाहित्यबहुतदूरकोसों पीछे छूटजाती है।खासकरकेयुवासाहित्यकारऔरउनकीलेखनीतोसमझकेपरे ही चली गयीहै।हिंदीसाहित्यमेंआंग्ल भाषाकोजबरदस्तीघुसानेकीपुरजोरकोशिश पतानहींक्योंहोरहीहै!उनकेद्वारारचितउपन्यासनजानेक्योंएककहानीसीप्रतीतहोतीहैजिसमेएकयादोहीपात्रोंकेबीचकहानीघूमकररहजातीहै।कहानीआगेबढ़तीहैमानोभारतीयमालगाड़ीकीतरहऔर ख़त्म होनेवक़्तराजधानीएक्सप्रेसकीतरह।पिछलेकुछवर्षोमेंमैं ने देखाहैइनकेद्वाराचयनित बिषयतोबहुतबड़े होते हैं लेकिनकहानीकोउसमुकामपरलेजानेमेंयेलोगअसमर्थ होरहेहैं।
एक बेहतर उपन्यास हमें प्रेरित करता करता है की हम उसे पढ़ें और पूरी तरह खत्म करें और हर पंक्ति को पूरी तरह से समझें और आनंदित हों! हालाँकि, विद यू; विदाउट यू की कहानी पूरी तरह से औंधे मुंह गिर जाती है और हमें बहुत से जगहों पे बेवजह की संवादों को भी पढ़ना होता है जो कहीं न कहीं अपेक्षित हैं! कहानी की गति बहुत ही धीमी है और पटकथा के नाम पर कुछ भी नहीं है जिसपे बात हो सके। विषयवस्तु तो बस प्रेम ही है – प्रेम आदित्य का जो कहीं न कहीं शरीर की भूगोलों से प्रेरित है और प्रेम निशिन्द का जो एक हद तक सच्चा है। और प्रेम कहानियां तो हमें रोज ही पढ़ने को मिल जाती हैं और प्रभात रंजन की किताब भी उसी भीड़ का हिस्सा लगती है!
नमस्ते
आपके ईमेल पर मैंने कई बार पुस्तक की समीक्षा भेजी, किन्तु वो जा ही नहीं रही है. यदि कोई दूसरा ईमेल है तो वो बता दीजिये, ताकि मेरी बात आप तक पहुँच सके !
धन्यवाद
संगीता अग्रवाल
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नमस्ते
आपके ईमेल पर मैंने कई बार पुस्तक की समीक्षा भेजी, किन्तु वो जा ही नहीं रही है. यदि कोई दूसरा ईमेल है तो वो बता दीजिये, ताकि मेरी बात आप तक पहुँच सके !
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संगीता अग्रवाल