uske hisse ka pyar hindi samiksha
लेख का समूह: साक्षात्कार

आशीष दलाल

आशीष दलाल गुजरात से हैं और महोदय ने हाल में ही अपनी प्रथम कथा-संग्रह लिखी है – उसके हिस्से का प्यार।  आशीष दलाल जी का साक्षात्कार अमित मिश्रा ने किया जो आपको पसंद अवश्य आएगा।

प्रिय पाठकगण, अपेक्षा है की आपकी दीवाल पे लटके तिथिपत्र या फिर आपकी टेबल पर रखा मशीनी तिथि-वक्त उदघोषक अपने माथे पर नए साल की खुशियां दिखा रहा होगा।  हमारे लिए हर वक्त एक सा ही है और हम हाजिर हैं आपके लिए साहित्यिक सामग्री लेके! एक लेखक, श्रीमान आशीष दलाल से वार्तालाप का आप आनंद ले सकते हैं!

 

 

अमित मिश्रा: सबसे पहले तो आपको अपनी प्रथम पुस्तक पर बहुत ही बधाइयाँ, आशीष जी! पाठकगण आपकी कथा-संग्रह को पसंद कर रहे हैं और इन सबसे आप जरूर उत्साहित होंगे! यहाँ तक का सफर कैसा रहा?

आशीष दलाल: धन्यवाद । यह संग्रह सोचा और अचानक ही नहीं आ गया । मेरे पिछले १० -१५ वर्षों के अनुभव और संघर्षों के बाद मैंने कुछ कहानियाँ लिखी । मैंने लेखन की शुरुआत जब मैं १५ साल का था तब ही से कर दी थी । मेरे सारे दोस्त जब खेलने में व्यस्त होते तो मैं लिख रहा होता था । लेखन के शुरूआती दौर में भोपाल से निकलने वाली ‘चकमक’ बाल पत्रिका में मेरी अभिव्यक्ति सादे शब्दों में प्रकाशित होती रहती थी । फिर कुछ अनुभव होने पर जयपुर से निकलने वाली बाल पत्रिका ‘बालहंस’ में बाल कहानियाँ  प्रकाशित होने लगी । प्रकाशन का दायरा बढ़ते हुए दैनिक भास्कर, नईदुनिया, सुमन सौरभ, चौथा संसार, दैनिक ट्रिब्यून आदि राष्ट्रीय स्तर के पत्र पत्रिकाओं तक पहुँच गया । इस मुकाम तक पहुँचने  के पहले अम्बाला छावनी हरियाणा के कहानी लेखन महाविद्यालय एवं इसी विद्यालय की मुखपत्रिका ‘शुभतारिका’ का मेरी लेखनी को तराशने में बेहद योगदान रहा है ।

कॉलेज की पढ़ाई पूर्ण करने के बाद लेखन और प्रकाशन का सिलसिला जीवन में आर्थिक और सामाजिक रूप से एक मुकाम पर पहुँचने तक लगभग थम सा गया था । ‘उसके हिस्से का प्यार’ लगभग १३ साल के विराम के बाद लेखन के क्षेत्र में फिर से सक्रिय होते हुए पाठकों को पुस्तक के रूप में मेरी पहली भेंट है ।

अमित मिश्रा: आशीष जी, आपने अपनी बातों को पाठकों तक पहुँचाने के लिए लघु कथाओं का माध्यम चुना।  इसके पीछे कोई खास मकसद? क्यूंकि आजकल उपन्यासों का दौर है तो आपको ये डर नहीं लगा की कहीं आपकी कहानी-संग्रह पीछे न छूट जाये?

आशीष दलाल: लघुकथा और कहानियाँ मेरी पसंदीदा विधा रही है । एक लेखक की लेखनी में पाठकों को देने के लिए अगर पर्याप्त मात्रा में संवेदना, मनोरंजन और सन्देश शामिल हो तो पाठक उसे पढ़ना जरुर पसन्द करता है । अब वह चाहे उपन्यास हो या कहानी संग्रह, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता । सब कुछ एक ही बात पर निर्भर करता है कि लेखक पाठकों की भावनाओं से खिलवाड़ तो नहीं कर रहा है । ‘उसके हिस्से का प्यार’ कहानी संग्रह की सारी कहानियाँ कहीं न कहीं पढ़ने वालो को अपनी सी लगती है ।  जिस रचना से पाठक अपने आपको जुड़ा हुआ पाये मेरी नजरों में वह लेखक की श्रेष्ठ कृति होती है । ‘उसके हिस्से का प्यार’ लिखते हुए मुझे अपने लेखन पर पूरा विश्वास था और इसी विश्वास के चलते हर डर को पीछे छोड़ते हुए आज उसी विश्वास को जीतते हुए देख रहा हूं ।   

अमित मिश्रा: मैंने आपके द्वारा लिखित हर कहानी पढ़ी और इन कहानियों में मैं कहीं न कहीं आधुनिक समाज की व्याकुलता को देखता हूँ।  आपको इन कहानियों के लिए प्रेरणा कहाँ से मिली?

आशीष दलाल: लेखक अपने आसपास के परिवेश में घटित घटनाओं को ही अपने लेखन का विषय बनाता है । मेरी संवेदनशीलता मुझे हर छोटी से छोटी घटना पर लिखने को विवश करती है । हर सम्बन्ध में उस पहलू को देखने में सक्षम होता हूं जो ज्यादातर लोग नहीं देख पाते । दुनिया में हर इंसान के पास कहने को कम से कम एक कहानी अवश्य होती है पर इस कहानी को शब्दों का श्रृंगार कर पेश करने का हुनर सभी के पास नहीं होता । कोई भी संवेदनशील बात मेरे लेखन का विषय बनकर कहानी के रूप में व्यक्त हो जाती है । कहानी लिखने के लिए मेरे प्रेरणा स्त्रोत मेरे काका को मानता हूं । हालांकि वे अब इस दुनिया में नहीं है । उन्हें कहानियाँ पढ़ने का बेहद शौक था इसी से घर में कभी भी साहित्यिक पुस्तकों की कमी नहीं रही, बस उन्हें ही पढ़ते हुए कलम हाथ में आ गई । स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई के दौरान मुख्य विषय विज्ञान होने पर भी कभी उन्होंने मुझे लेखन से दूर होने के लिए नहीं कहा ।   

अमित मिश्रा: आपने अपनी कहानियों में कहीं न कहीं प्रेम के अलग-अलग रूपों को दर्शाया है।  आपके लिए, आशीष जी, एक लेखक के तौर पे प्रेम का क्या महत्व है? ये प्रश्न मैं साहित्यिक दृष्टिकोण से पूछना चाहता हूँ।  

आशीष दलाल: एक लेखक के लिए प्यार का जिन्दगी में उतना ही महत्व होता है जितना की एक आम आदमी की जिन्दगी में । बतौर लेखक मैं प्यार को एक संवेदना के रूप में देखता हूं । प्रेम पर लिखी गई कोई भी साहित्यिक कृति स्त्री पात्र की उपस्थिति के बिना पूर्ण नहीं हो सकती । जिन्दगी में प्रेम को अलग से परिभाषित करने की जरूरत नहीं होती है । प्रेम पाने के लिए प्रेम करना जरुरी है यह बात मैं अक्सर कहता रहता हूँ ।

प्यार की चाहत सभी को होती है । यह एक ऐसा अहसास है जो हर कोई अनुभव करना चाहता है और इस अनुभव की शुरुआत बचपन से ही हो जाती है । मां का अपने बच्चे से और बच्चे का अपनी मां से प्यार – यही तो पहली अनुभूति होती है प्यार की । जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती प्यार के दायरे भी बढ़ते जाते है । मम्मी-पापा, भाई-बहन, चाचा-चाची, दादा-दादी, नाना-नानी, मामा-मामी, बुआ-फूफाजी के रिश्तों से गुजरता हुआ प्यार दोस्ती के दायरों तक विस्तृत होकर एक अलग ही रूप में अपनी खुशबु बिखरता है । दोस्ती से आगे जाकर उम्र के एक बेहद अहम पड़ाव पर आकर यौवन इस प्यार को एक अलग ही नजरों से अनुभव करने की चाहत महसूस करता है । दिल में एक आह उठती रहती है । एक प्यास बढ़ती जाती है । एक आग प्रज्ज्वलित होने लगती है । यहां सवाल केवल शारीरिक संतोष का नहीं है । उम्र की इस दहलीज पर मानसिक तृप्ति भी मायने रखती है पर फिल्मों में देखी, कही-सुनी अधिकांश बातें शरीर से जुड़े सम्बन्धों पर ही भार देती है । प्यार की व्याख्या उससे कई अलग हटकर होती है ।

कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी या प्रेमिका को बेहद प्यार करता है और बदले में अपेक्षा भी रखता है की उसकी पत्नी / प्रेमिका भी उसे उतना ही, उसी तरह प्यार करे । पर प्यार की अभिव्यक्ति सभी के लिए अलग अलग हो सकती है । कोई बोलकर प्रेम व्यक्त करता है तो किसी का प्यार मौन होता है । दोनों ही किस्सों में मजेदार बात यह होती है कि सच्चा प्रेम करने वाले एक दूसरे के प्रेम की अभिव्यक्ति समझ ही जाते है ।

अमित मिश्रा: हिंदी साहित्य, अगर हम पुनर्विचार करें, कहीं न कहीं अपनी पकड़ फिर से बनाने में सफल होती दिख रही है।  आशीष जी, आप तत्काल हिंदी साहित्य के प्रारूप पे क्या कहना चाहेंगे?

आशीष दलाल: हिंदी साहित्य का वर्तमान और भविष्य उज्जवल ही है । कई युवा साहित्यकार बदलते समय के हिसाब से बेबाक अपनी अभिव्यक्ति दे रहे है जो समय के हिसाब से उचित है । कोई भी रचना उत्कृष्ट तभी बनती है जब वह वर्तमान प्रवाह को ध्यान में रखकर लिखी जाती है । समय के हिसाब से आधुनिक परिवेश और दूर होते सामाजिक मूल्यों को साहित्य में वाचा मिल रही है । आज का युवा साहित्यकार वही लिख रहा है जो पाठक पसन्द कर रहे है ।

अमित मिश्रा: अगर आपके प्रथम पुस्तक उसके हिस्से का प्यार की बात करूँ तो अपने अपने कथा-संग्रह में १७ कहानियाँ रखी हैं।  इनमें से एक लेखक के तौर पे आपके सबसे करीब कौन सी कहानी है?

आशीष दलाल: ‘दूसरा मौका’ मेरे सबसे करीब है क्योंकि इसके कल्पना से ज्यादा सच्चाई समाहित है । मेरा यह मानना है कि शादी जैसे महत्व के फैसलों में लड़की और लड़के की सहमति होना जरुरी है और यह फैसला करने का हक भी उनका ही होना चाहिए । बच्चों के सलाहकार बनकर माता पिता अक्सर ऐसे मौको पर अपने फैसले उनपर डाल देते है और यही फैसले आगे चलकर शादी जैसे सम्बन्धों में बिखराव लाता है । विवाह चाहे प्रेम विवाह ही क्यों न हो अगर दोनों पात्र एक दूसरे को पाकर खुश रह सकते है तो फिर समाज, जाति, कुल का महत्व व्यक्तिगत महत्व से ज्यादा नहीं होना चाहिए ।   

इसके अतिरिक्त एक लेखक के तौर पर ‘एक रात की मुलाकात’ लिखने में मुझे बेहद संघर्ष करना पड़ा, इसी से मेरे लिए यह संग्रह की सबसे महत्वपूर्ण कहानी है । कुछ घटनाओं को कल्पना का रंग देकर यह कहानी लिखी गई है । प्यार को लेकर आज भी युवावस्था में विधवा हुई स्त्री की स्थिति में कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है । उसे सामाजिक दायरों में रहते हुए अकेले ही जीना होता है पर शायद ही कोई उसकी अपनी जरूरतों के बारें में सोचता है । ऐसे में जब शादी नामक संस्था के बाहर प्रेम सम्बन्ध बन जाते है तो दोष किसी को भी नहीं दिया जा सकता । माता पिता के दिल में उठे इस प्यार की धरातल पर कहानी के नायक और नायिका के प्यार की आहुति और उस वक्त की संवेदना को वर्णन करना मेरे लिए थोड़ा मुश्किल रहा क्योंकि हमारी भारतीय समाज व्यवस्था में रहते हुए कभी भी ऐसा सोचा ही नहीं जा सकता पर सच तो यह है कि ऐसी घटनायें यदा कदा होती ही रहती है और प्यार और उससे जुड़ी जरूरतों को रोका नहीं जा सकता ।  

अमित मिश्रा: मैं अंतिम संस्कार कहानी के बारे में ये जरूर पूछना चाहूंगा की आप इस अवस्था का दोषी किसे मानते हैं? क्या हम सामाजिक तौर पे कहीं न कहीं असफल हुए हैं  या फिर बढ़ती आधुनिकता का ये परिणाम है?

आशीष दलाल: ‘अंतिम संस्कार’ घर से भागी हुई एक लड़की की कहानी है । इन्सान जब युवावस्था में कदम रखता है तब से वह सतरंगी सपने देखने शुरू कर देता है । यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है । उम्र के हर पड़ाव पर इन्सान केवल प्यार का ही भूखा होता है । घर में हद से ज्यादा अनुशासन और हद से ज्यादा छूट, दोनों ही परिस्थितियाँ युवावर्ग के लिए घातक साबित होती है । इस उम्र में युवा का खुद पर अंकुश न के बराबर होता है, ऐसे में जब उसे घर की अपेक्षा बाहर से प्यार की संभावना ज्यादा दिखाई देती है तो इस तरह की परिस्थितियों का निर्माण होता है । इन सब के पीछे काफी हद तक बंधे हुए सामाजिक दायरे, मां बाप का समय के साथ न बदलना जिम्मेदार है जो आधुनिक युग में जीते युवा दिलों में एक तरह की दुविधा पैदा कर देती है । यही दुविधा और कुछ न कह पाने की विवशता घर से भाग जाने और उसके बाद की दुर्दशा को जन्म देती है ।

अमित मिश्रा: क्या आप पुनः कथा-संग्रह ही लिखना पसंद करेंगे या फिर कभी उपन्यास की रचना करने की भी सोचेंगे, आशीष जी? आपकी लेखनी पाठकों को बांध कर रखने में तो समर्थ हुई है ये मानना होगा!

आशीष दलाल: फिलहाल इस बारें अभी ज्यादा कुछ सोचा नहीं पर कहानियाँ अक्सर लिखता रहता हूँ । कोई एक अच्छे विषय को लेकर प्यार की पृष्ठभूमि पर एक उपन्यास लिखने की योजना है ।

अमित मिश्रा: मेरे प्रश्नों का बेबाक उतर देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद, आशीष जी! यही कामना करता हूँ की आपकी रचनाएँ लोगों को पसंद आती रहें और आप हिंदी साहित्य के उत्थान में अपना योगदान करते रहें!  

आशीष दलाल: धन्यवाद । मैं अपने पाठकों का भी दिल से आभार मानना चाहूँगा जिन्होंने मेरे प्रथम संग्रह को पसन्द किया और सराहा भी । अपने चाहने वालों का प्रेम मुझे शीघ्र ही कुछ नया लिखने के लिए बाध्य कर ही देगा । तब तक पाठकगण मेरे फेसबुक पेज ‘हर रोज एक कहानी’ पर लघुकथाओं का आनंद ले सकते है ।

सम्बंधित विषय: #वार्तालाप
No results found.

अपना मत साझा करें:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Fill out this field
Fill out this field
Please enter a valid email address.